कहते हैं मेहनत सी किए गए कर्म का फल मीठा होता है – लेकिन क्या सिर्फ मेहनत करने से अच्छा फल मिल जाता है ? मैं नहीं मानता। मुझे लगता है, की अच्छा फल तभी मिलता है जब आपका कर्म सच्चा होता है। बेशक, मेहनत एक जरुरी फैक्टर है, लेकिन इस के साथ साथ और भी काफी कुछ चाहिए होता है। क्योंकि आपका कर्म सच्चा तभी होगा जब आप किसी भी काम को अपने पूरे तन मन से, पूरी तयारी से, एक मजबूत इच्छाशक्ति के साथ करेंगे। और ये तब होता है जब आपके पास एक मजबूत कारण हो किसी काम को करने का। हम असफल तभी होते हैं, जब हम किसी काम को किसी के दवाब में या बिना मन से करते हैं – किसी ने कहा, और हम लग गए काम पर – तो सफल होने की संभावना काम ही होगी। आज के इस मोटिवेशनल कविता (Hindi motivational poem) में इसी पे बात होगी।
hindi poem
बेटी तुम क्या हो?
दोस्तों बेटियां ना होतीं तो शायद कुछ भी ना होता। और आज की कविता जिसे श्री आदित्य मिश्रा जी ने लिखा है – ये समर्पित हैं भारत की सभी बहनों और बेटियों को।
तो आइये पढ़ते हैं इस बेहतरीन हिंदी कविता को।

बेटी तुम क्या हो?
ममता की प्रतिमा, मोह की छाया,
जीवन का आधार हो ,
जग की जननी, तुम एक परिवार हो,
कला की देवी,शक्ति का अवतार हो
पिता की पुत्री,माया की घरद्वार हो ।।
जन्म-भूमि की मान,पिया की अमानत,
ससुराल की अनमोल उपहार हो।
क्षमा ,दया तझमें,तप ,त्याग अपार,
तुम गुणों का भंडार हो ।।
सभ्यता का संरक्षक,संस्कृति के पालक
तुम ही तारणहार हो ।
काली कालजयी बादल, मेघों का गरजन,
इंद्र की चमत्कार हो ।।
सुख का सागर,दुख का उपचारक,
दुःख – सुख का प्यार हो।
हरी भरी धरती ,उन्नति का सहारा ,
जग की कंठहार हो ।।
बागों की मुस्कान ,फूलों की खुशबू
चमन की बहार हो
रात की चाँदनी, दिन का चमक
भविष्य की कर्णधार हो।।
नदी की नीर ,निर्मल विचार
तुम उसकी धारा हो
झरना की सरगम,सबल प्रबल भारती,
समय की पुकार हो।।
हिमालय की विशालता ,दृढ़ निश्चयी ,
एकता की संचार हो
खेतों का अन्न ,वृक्षों का फल,
प्रकृति का श्रृंगार हो।।
सूर्य की ज्योति ,अन्याय का दुश्मन
आदित्य की जलती अंगार हो।
वतन तुझसे ,वतन है तुम्हारा ,
जिस पर तुम्हारा अधिकार हो
जन -जन की सिरताज हो।
लेखक: श्री आदित्य मिश्रा